सेक्स से जुड़ी वो बातें, जो किशोरों के लिए स्कूल के सिलेबस में होना चाहिए

सेक्स को लेकर भारतीय समाज हमेशा से कुंठा और उधेड़बुन में रहा है। सेक्स को लेकर कई तरह की संकीर्ण सोच रही है। सोचिये ! जिस समाज में शादी से पहले तक न सेक्स पर बात करने अनुमति हो, वही समाज शादी के एक साल के बाद ही पूछने लगता है कि कब ‘गुड न्यूज़’ दे रही हो (या दे रहे हो)। मतलब सबको पता है कि सेक्स से ही संतानोत्पति होती है, लेकिन इसपर बात करना शादी के पूर्व माँ-बाप और समाज को स्वीकार नहीं। 

समाज में जिस तरह से सेक्स को टैबू बना दिया गया है कि एक किशोर सोचता है यदि उसने हस्तमैथुन भी कर लिया, तो उसका ब्रह्मचर्य नष्ट हो गया, पाप हो गया। हालाँकि जब तक शादी नहीं होती तब तक सेक्स को लेकर अजीब ग्रंथि पाले रखते हैं। फुटपाथी, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के आसपास मिलने वाली सस्ती किताबों से वे सेक्स के बारे में गलत-सही धारणाएं भी विकसित कर लेते है, जो खतरनाक होता है। 

सोचिये जब आप किशोर थे, घर में आपको किसी ने सेक्स से जुड़ी जानकारी दी? अथवा किसी ने आपको वैज्ञानिक तथ्यों व लेखों वाला सेक्स को समझने के लिए, मासिक धर्म के बारे जानने के लिए कोई किताब दी? यदि आपके घरवालों ने कोई ऐसी किताब दी अथवा खुद से आपका सेक्स पर ज्ञान बढ़ाया, तो आप खुशकिस्मत है, और आपके अभिभावक चंद अनुकरणीय अपवाद।

तस्वीर प्रतीकात्मक SWISSINFO.CH से साभार।

आप सोच रहे होंगे किस तरह के वैज्ञानिक तथ्य व जानकारी। मेरा आशय है शारीरिक बदलाव के बारे में, सेक्स के बारे में, सेक्स और बलात्कार से जुड़े कानून के बारे में आदि जिससे गलतफहमियां न पनपें। गलतफहमियां जो सस्ते साहित्य व भ्रामक ज्ञान से फैलती है। मसलन कि हस्तमैथुन करने से लिंग कमजोर हो जाता है, पहली रात सेक्स करने से यदि पत्नी के यौननांग से खून नहीं निकला, तो वह पूर्व में किसी के साथ सम्बन्ध बना चुकी है, महिला नीम्बू की तरह होती है, उसे जितना मसलो उतना ही रस निकलता है, हस्तमैथुन करने से शादी होने पर बच्चा पैदा नहीं होता और पता नहीं कैसे कैसे? 

यह स्थिति इसलिए आती है कि सही समय पर युवकों को सेक्स से जुडी जानकारी नहीं मिलती। न घर के अभिभावकों द्वारा और न ही स्कूल के मास्टरों द्वारा। कोई उन्हें नहीं बताता कि सेक्स करना एक स्वस्थ प्रक्रिया है जिससे एक तो आनंद की प्राप्ति होती है और दूसरा संतानोत्पति होती है।

हालाँकि आजकल स्मार्टफोन और सस्ते इन्टरनेट आने के बाद युवा खूब पोर्न साईट देखते हैं। 'पोर्नहब' नामक वेबसाइट ने अपने खुलासे में बताया कि लगभग 86 प्रतिशत भारतीय पोर्न स्मार्टफोन से देखते हैं। और यह सिर्फ लड़कों की ही बात नहीं है, लड़कियाँ भी कोई पीछे नहीं है। लगभग 30 प्रतिशत लड़कियाँ पोर्न साईट देखतीहैं। लेकिन हम स्वीकार नहीं करते। अपने साथियों तक से इसपर स्वस्थ परिचर्चा से डरते हैं। क्या यह ठीक बात है?

एक चीज और भी समझने की है कि सेक्स करने के लिए उन्हें कोई बताता नहीं कि यह न ही पाप है और न अपराध। सेक्स के लिए नियम कानून का पालन ज़रूर करना चाहिए और कुछ सावधानियां भी बरती जानी चाहिए। मसलन भारत में लड़की यदि 18 साल से कम उम्र की है, तो उसके साथ कोई लडके को सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए, नहीं तो वो पता नहीं किस किस मामले में फंस सकता है। जैसे बलात्कार और अपहरण के मामले उसपर लगते हैं। अब तो पोक्सो कानून भी लगता है जिसमें बहुत ही कड़े सजा का प्रावधान है।

अभी एक जगह पढ़ रहा था, सेक्स तब तक मत करो जब तो वोट देने के लिए योग्य न हो जाओ। यह भी अच्छा विचार है। दरअसल इस बात में कानून के पालन करने और समझदार-जिम्मेदार बनने के बाद स्वस्थ सेक्स करने की बात कही गई है। इसके अतिरिक्त यदि सावधानियां नहीं बरती गईं, जैसे कंडोम का प्रयोग या कोई विधि जिससे बच्चा न हो (जिसकी डॉक्टर सलाह देते हैं), तब कुंवारी लड़की व कुंवारा लड़का बुरी स्थिति में फंस सकते हैं। एक तो भारतीय समाज बिना शादी के उत्पन्न बच्चे को अनैतिक मानता है (हालाँकि बाल विवाह कानून के अंतर्गत इसे अनैतिक नहीं माना जाता), दूसरा पढ़ने व बढ़ने की उम्र में माँ-बाप बन जाना कई संकट लाता है।

इसलिए सेक्स को लेकर तरह तरह की गलतफहमियां और कुंठा समाज में बन गयी है, उसे युवाओं के स्वस्थ मन को बनाने के लिए तथा सामाजिक पूर्वाग्रह तोड़ने के लिए जरुरी है।

शादी के बाद भी अथवा पार्टनरशिप में, सेक्स अपने आप में कोई समस्या नहीं। समस्या है सेक्स की इच्छा पूर्ति के लिए एकतरफा मर्जी का थोपा जाना। किसी के भी इच्छा के विरुद्ध सेक्स के लिए, उसकी विवशता से लाभ उठाना, अपनी मर्जी थोपना, धमकी देना या बल प्रयोग करना, बलात्कार है। जिन मामलों में लड़की नाबालिग है, अथवा लड़का नाबालिग है, तो यह वैसे ही अपराध की परिधि (पोक्सो कानून के अंतर्गत) में आता है।

याद रखिये सेक्स के आनंद से लोगों को दूर रख पाना लगभग असंभव है। उचित उम्र और स्वैच्छिक सेक्स से लोगों को दूर रखना ठीक भी नहीं है ऐसे में ज़रूरी है कि व्यक्ति सेक्स का नियमन करे, कानून का पालन करे, इसे लेकर अपनी और समाज की भ्रांतियां मिटाये, उसपर बात करे, शिक्षा में किशोरों के सिलेबस में शामिल करें। ..और सबसे महत्वपूर्ण बात, संयमित होकर आनंद उठाएं।

हाल के दिनों में कई बाबा जो प्रौढ़ावस्था अवस्था में पहुँच गए थे, वे भी सेक्स से जुड़े अपराधों में संलग्न पाए गए हैं। यह आशाराम, रामपाल आदि हिन्दू संतों की ही बात नहीं है, बल्कि सभी धर्मों की बात है। अभी ईसाई धर्म प्रमुख पोप ने भी इसे खुलकर स्वीकार किया है और इससे उबरने के लिए प्रयास करने की बात कही। पोप द्वारा ऐसी स्वीकारोक्ति व धार्मिक संगठन में सुधार करने की पहल का स्वागत करना चाहिए; न कि स्वीकारोक्ति के लिए सिर्फ आलोचना।

बाबाओं, धर्मगुरुओं, पादरियों, मौलवियों आदि का ऐसी घटनाओं में शामिल होना कोई नई बात नहीं है, यह बात हम अखबार में ऐसी खबरों को पढ़कर जानते हैं। धर्म की आड़ में ऐसा इसलिए होता है कि कम उम्र में ही उनपर ब्रह्मचर्य की पागलपन समाज द्वारा थोप दिया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि स्त्री से दूर रहो। सेक्स और स्त्री मोक्ष, निर्वाण, ज्ञान अथवा ईश्वर प्राप्ति में बाधक है। धर्म-प्रमुख या बाबा बनने के फायदे भी कम नहीं हैं। रोजी-रोटी कमाने की फ़िक्र कम हो जाती है और समाज व भक्त बिरादरी ईज्ज़त भी खूब देता है। आम लोग तो क्या, बड़े-बड़े नेता-मंत्री, अधिकारी, बिज़नेसमैन सब पैर छूते हैं।

हालाँकि सेक्स के अनुभव की कमी के कारण, उनके मन में महिलाओं को लेकर धीरे-धीरे एक गलत धारणा बन जाती है और सेक्स को लेकर कुंठा। लेकिन सेक्स के लिए उनका आकर्षण कम नहीं होता है। एक प्राकृतिक उपहार और इनसानी ज़रूरत को आप कितना दबा सकते हैं! लेकिन धार्मिक कारणों से बस उसे दबाते रहते हैं। इसी कारण कोई प्रौढ़ संन्यासी भी सेक्स का मजा लेने के चक्कर में फंस जाता है। कई बार उसके साथ ही अन्य भी अपराध कर डालता है।

धार्मिक संगठनों में ऐसी घटनाओं का घटित होना, इसलिए भी ज्यादा संभव होता है कि वह स्थान ऐसे कृत्यों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान होते हैं। वहां के धर्म प्रमुख का सबसे सुरक्षित जगह, जहाँ उसकी मर्जी के बिना कोई आ-जा नहीं सकता। साथ ही साथ वहां बाबा या संन्यासी के लिए मान-सम्मान की पुरी गारंटी होती है। इसके अलावे धर्मों के हिसाब से महिलाओं को कमतर इंसान भी समझा जाता है। यह बात आप ज्यादातर धर्म-प्रमुखों के पुरुष होने की बात के आधार पर भी देख सकते हैं। ऐसे में, कई बार थोड़े दबाव में महिलायें, कई बार धार्मिक लोभ के चक्कर में वे खुद को सौंप भी देती है। लेकिन कई बार कुछ महिलायें इसके विरोध में खड़ी हो जाती हैं, कानूनी कार्यवाही कर इस जबरदस्ती के कृत्य और शोषण का बदला लेती हैं।

इसलिए याद रखें! जबरदस्ती का यौन संयम मानसिक रुग्णता व कुंठा का कारण बनता है। प्राकृतिक सेक्स की चाह का दमन दुष्ट-कुटिल, सामाजिक-मनोवैज्ञानिक बीमारी का कारण बनता है। सेक्स एक प्राकृतिक चाह है, और इसके बलपूर्वक इनकार या बहुत अधिक स्वतंत्रता दोनों अपराधों का कारण बन सकता है।

– शेषनाथ वर्णवाल

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