कविता : ऐ पुरुष! क्या खोजता है तू ?


ऐ पुरुष!
तुझसे पूछना है कुछ..।

ऐसा क्या है मेरे पास,
जो तूने कभी देखा नही?

ऐसा क्या है मेरे पास,
जिसका उपयोग तूने कभी नही किया?

ऐसा क्या है मेरे पास,
जिसे कभी महसूस नही किया?

ऐसा क्या है मेरे पास,
जो तू हर बार खोजने की कोशिश करता है?

क्या तू किसी स्त्री की कोख में नही पला?
क्या तू किसी स्त्री की योनि से नही जना?
क्या तूने दो वर्षों तक स्तनपान नही किया?

क्या तू किसी स्त्री की जाँघ पर नही सोया?
क्या तूझे स्त्री के होंठों का चुम्बन नही मिला?

क्या मुलायम हाथो से सहलाया नही गया?
क्या तुझे छाती से लगाया नही गया?

किस अंग से अछूता रह गया तू?
जो हर स्त्री में खोजता है...

वही कोख है मेरे पास,
जिसमें एक माँ ने नौ महीने रखा तुझे।

वही योनि है मेरे पास,
जिससे तेरी माँ ने जनम दिया तुझे।

वही स्तन है मेरे पास,
जिनसे तेरी माँ ने दुग्धपान कराया तुझे।

वही जंघा है मेरे पास,
जिसपर तेरी माँ ने सुलाया तुझे।

वही होंठ है मेरे पास,
जिनसे तेरी माँ ने चूमा तुझे।

वही हाथ है मेरे पास,
जिनसे तेरी माँ ने सहलाया तुझे।

वही छाती है मेरे पास,
जिससे तेरी माँ ने लगाया तुझे।

फिर क्या नयी खोज करना चाहता है तू?
क्यूँ हर बार मेरे शरीर को,
आँखो से नोचता नजर आता है तू?

क्यूँ मेरे वक्ष, मेरी योनि ,मेरे जाँघ ,
पर नज़रें टिकाता है तू?

क्या खोजना चाहता है तू?
क्या खोजना चाहता है तू?

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