मैं जब
इक्कीस बरस की हुई,
परिवार और
रिश्तेदारों के बीच,
शादी की चिंता की लकीर उभरने लगी
फिर वक़्त
आता है रिश्तेदारों की ज़िम्मेदारी का,
और अचानक से,
एक से एक लगातार रिश्ते की पंक्ति शुरू
थोड़ी हड़बड़ी
और बहुत ढूंढने के बाद
लड़का मिल
जाता है,
जो पढ़ा लिखा
पारिवारिक
सर्वगुण
संपन्न है,
मेरे बाप, दादा, भाई बहुत
सामाजिक और इज़्ज़तदार लोग हैं ,
इस हिसाब से मैं भी सुशील सूंदर, सभ्य खानदानी लड़की की श्रेणी में आ ही जाती हूँ
मेरे अलावा अन्य सभी
मेरे लिए परफेक्ट जीवन साथी को तय कर देते हैं
..तो अब जब
जोड़ी मिल ही गयी है
तो लगे हाथ
लेन देन की भी बात हो ही गयी
बस घर वाले
जो भी देंगे वो लड़की का ही होगा
ऐसा कहा
लड़के वालों ने
फिर भी समाज
को दिखाने के लिए
एक कार और
दस लाख रुपय का बंदोबस्त करना पड़ेगा
बात अब यहाँ
आती है कि मैं भी पढ़ी लिखी
और वह लड़का भी पढ़ा लिखा,
हम दोनों
पढ़े लिखे पर एक रुपयों में बिकने को तैयार हैं
और मेरा
परिवार खरीदने को तैयार है
पर क्यों
जीवन साथी खरीदना पड़ रहा है?
क्यों
रिश्तों को पैसो में तौला जा रहा है?
जिसके साथ
पूरी ज़िन्दगी बितानी है
जिसके साथ
सुख दुःख बाँटना हैं,
जहाँ मेरा
एक नया घर, नया परिवार, नए रिश्ते बनने हैं
वहाँ इन सब
की बुनियाद दौलत है
कैसे क़ुबूल
करूँ मैं इस रिश्ते को
जिसकी नीव
ही मात्र एक कार और दस लाख
पर टिक गयी है...??
तस्वीर फाइनेंसियल एक्स्प्रेस से साभार