रेप का लोक-लाज-तहजीब और लड़की के कपड़ों से क्या सम्बन्ध हैं?


लड़की के कपड़ों को लेकर भारतीय समाज में बहुत बात होती है, और यह लोक-लाज, शर्म-तहजीब, लिहाज आदि से आगे बढ़ते-बढ़ते लड़कों को उकसाने तक पहुँच जाती है। आगे चलकर बात ही बात में, यह रेप का कारण बनने तक चला जाता है, और ऐसा सोचने वालों में कोई अपवाद स्वरुप चंद लोग नहीं हैं, बल्कि ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, अपने भारत देश में। 

आपको यकीन न हो, तो अपने ही घर में बात शुरू कर के देखें, अथवा अपने साथियों, गली-मोहल्ले में बात शुरू करें। ईस्लाम तो बकायदा इसे सही ठहराने के लिए बुर्का पहना देता है औरतों को। दुसरे धर्मों में भी ऐसी प्रथा है, घर से निकलने तक की मनाही होती है। कभी निकले तो लंबे घूँघट में। लेकिन धार्मिक रूप से जिस प्रकार नियम-कानून में मुसलमान इसका पालन करते हैं, दूसरी जगह देखना मुश्किल है।

इसी मुद्दे पर एकबार फेसबुक पर ही चर्चा चल पड़ी। लोग अलग-अलग राय रखने लगे। वैसे ऐसी चर्चा में बड़ा रस आता है, खाशकर लड़कों को। सो कई लोग कमेन्ट पर कमेन्ट पोस्ट करने लगे। ऐसी चर्चा में लड़की आ जाये, तो कहने ही क्या ! संयोग से इस चर्चा को मेरी एक महिला साथी ने ही शुरू किया था। एक चित्र पोस्ट करके जिसमें लड़की घुटने से ऊपर तक कपडे पहनी थी और स्कूटी में जा रही थी। बेशक लड़की खुबसूरत और आकर्षक लग रही थी।

इसपर कई कमेन्ट आये, पर मैं यहाँ सिर्फ अपना ही कमेन्ट लिखूंगा। साथ ही इस विषय पर अपनी राय भी लिखूंगा। शुरुआत अपने कमेन्ट से। मैंने कहा, “अगर लड़का चड्डी में निकलेगातब भी कोई उसका रेप नहीं करेगाऐसा मुझे लगता है। दूसरी बात, तस्वीर में दिखाए गए ड्रेस में भी लड़की निकलेगीतब स्वीडनआइसलैंडडेनमार्क आदि जैसे देशों में रेप होने के चांस बहुत कम हैं। वहाँ हो सकता हैउसे कोई अलग से नोटिस भी नहीं करेगा।

..तो समाजधर्ममाहौल आदि एक इंसान के मानस को बनाते हैं। ऐसे समुदाय हैंजहां लोग नंगे अथवा अर्ध नग्न रहते हैं। वहां की तरह दिल्ली में रहेंतो आप सोच सकते हैं क्या होगा। आप लोगों के परिधान पर कंट्रोल नहीं कर सकतेअपने व्यवहार पर कर सकते हैं।

रेप करने वाले कई कारणों से ऐसा करते होंगे, लेकिन इनमें मानसिक बीमारी या सत्ता के मद में चूर या सबक सिखाने के लिए, अपनी मर्दानगी दिखाने आदि के कारण ऐसी घटना को अंजाम दे सकते हैं। यदि कपड़ों में ढंके रहने वाली लड़कियांसड़कों पर नहीं निकलने वाली लड़कियांघर में कैद रहने वाली लड़कियां जो स्वतंत्र रूप सेशाम के वक्त या चेहरे दिखा के नहीं घूमती हैंरेप होने की स्थिति के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार हैं। क्योंकि समाज में एक मानसिकता बन गयी है कि लड़की को शाम के वक्त नहीं और उसके बाद रात में घर से नहीं निकलना, अकेले कहीं नहीं जाना। पब्लिक स्पेस में लड़कियाँ जितना कम दिखेंगी, कम घूमेंगी, कम पढ़ेंगी माहौल उतना बदतर होगा।

एक बार में दिल्ली गया था, एक ट्रेनिंग में। साथ में कुछ महिला मित्र भी थीं। हम करीब साढ़े नौ बजे के आसपास सड़क पर घूम रहे थे। पुलिस वाले आये, बोले इतनी रात को लड़कियों के साथ घूमना अच्छा नहीं है। आपको पता नहीं..! हम समझ गए, थोड़ा दर भी गए और वापस भी कमरों में लौट गए।

ये हमें तात्कालिक सेफ प्रतीत हो सकता है, पर समाज और पुलिस प्रशासन का यह मानस कि लड़कियाँ अकेली घूमेंगी, रात को घूमेंगी, ऐसे-वैसे कपड़ों में घूमेंगी, तो रेप होंगे, यह बड़ी खतरनाक स्थिति है। हम इसके अभ्यस्थ हो गए हैं, और नई पीढ़ी को भी वैसा ही अभ्यस्थ कर देते हैं, ऐसा सोच रखने को।

हमें तो उल्टा करना चाहिए था। हमें सुरक्षा व्यवस्था बढ़ानी चाहिए थी। सड़क पर उचित लाईट, महिला पेट्रोलिंग, तेज़ी से सुरक्षा उपलब्ध करवाने वाला हेल्पलाइन आदि जैसा कुछ करना चाहिए था। साथ ही अपने घर से लड़कियों को लड़कों की भांति घुमने को स्वीकार करना चाहिए था, जिससे लड़की का अनुपात हर जगह बदलता। लड़कियाँ पब्लिक स्पेस को लड़कों की भांति क्लेम कर पातीं, ऐसा कुछ करना चाहिए था। पर कर हम कुछ और ही रहे हैं। हमारा पूरा ध्यान कपड़ों, रात के समय, घूँघट-बुर्का, शर्म-लिहाज आदि पर है। हम इससे निकल ही नहीं पर रहे हैं।  

 ..और उनकी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है, हमारा धर्मसमाजसंस्कृति। तो आप आसान सा सामान्यीकरण करने के लिए लड़कियों को जिम्मेदार बताईये। कपड़ों पर बहस कीजिये। याद रखिये इस तरह से आप रेप करने वालों को ही ठीक करार दे रहे हैं और लड़कियों को वैसे ही पर्दा और घूंघट में रहने को ठीक कह रहे हैं।


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तस्वीर प्रतीकात्मक 'दीपिका पदुकोने' और EYENI.BIZ का साभार।  

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