कविता : हां मैं सोना हूं, अभी और तपना बाकी है!


अभी थोड़ा कम तपी हूं
अभी और तपना बाकी है
अभी और निखरना बाकी है
हां मैं सोना हूं
थोड़ा और संवरना बाकी है

मैं कीमती तो हूं पर खूबसूरत नहीं
मैं कीमती तो हूं पर अभी खदानों में हूं
मैं कीमती तो हूं पर लोगों की नजरों में नहीं हूं
मुझे भी दुनिया के सामने आना है
खुद को साबित करना है
चमकना है
लुभाना है
जाहिर करनी है
लोगों पर अपनी कीमत
और अपना वजूद
कीमती होने का

कौड़ियों के भाव जिसे किसी ने समझा
खो देने के बाद ही सही ..
पता तो चलना ही चाहिए
कि वह पीतल नहीं.. सोना था
जिसने उसे पीतल समझ फेंक दिया
एक बार अपने चमक से
उसकी नजरों को भी चौंधियाना तो चाहिए..

हां मैं सोना हूं
और मुझे पा पाना
तुम्हारी औकात से बाहर थी
यह समझाना तो चाहिए
हां मैं सोना हूं
बताना तो चाहिए
मुझे भी अपनी औकात
तुम पर एक बार जताना तो चाहिए....
तस्वीर प्रतीकात्मक OSHINITY ब्लॉग से साभार।

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