..औरत का कोई देश नहीं होता

तस्वीर प्रतीकात्मक, इंडिया टुडे से साभार। 

जी हां! मैं विस्वास करता हूँ औरत का कोई देश नही है। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ आजादी है, तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नही होता है।

धरती पर कोई औरत कहीं भी आजाद नही है, धरती पर कोई औरत सुरक्षित नही है। ये दिन प्रतिदिन हो रहे बलात्कार। बेटियो को कोख में मारना। महिलाओ को जिन्दा जलाना। उनके साथ छेड़छाड़ की घटनाओ से प्रतीत होता है।

एक लड़की जिस दिन पैदा होती है, उसी दिन कुछ नीची सोच के लोग घर में उस बेटी को जन्म देने वाली माँ को ही घृणा की नजरो से देखने लग जाते है। जन्म देने वाली माँ को न जाने क्या क्या कहने लगते है। क्या यही है औरत का देश!

जिस दिन शादी करके लाते है घर में, उसी दिन से महिला की गूलामी पक्की कर दी जाती  और उसको बताया जाता है, तुम्हारा पति ही तुम्हारा सब कुछ है। उसके मर्जी के खिलाफ तुमको कुछ नही करना है। उसके बिना अनुमति के किसी से बात भी नही करना है। उसके इशारे पर ही तुमको चलना है। वो जो कहेगा वही करना है। क्या यही है औरत का देश!

अगर पत्नी किसी अजनबी से दो शब्द बोल दे, तो उसके पति परमेश्वर को आग लग जाती है। ..अखिर क्यों? क्या महिला इंसान नही है? क्या उसको किसी से बात करने का अधिकार नही है? हर बात के लिये आप से पूछेगी? उसका भी घर है, उसका भी अधिकार है, उसका भी देश है, हमारा देश सबको सामान अधिकार देता है, फिर भी महिलाओ को आजादी क्यों नही है? 

इसका जबाब शायद किसी भी पुरुष के पास नही है, क्योंकि पुरुष समाज महिलाओ को हमेशा गुलाम ही देखना चाहता है। यही एक वजह हो सकती है, जो आजाद देश में महिलाओ को आजादी नही मिल रही है..!!

इन सभी बातो पर गौर करने से पता चलता है कि महिलाओ का कोई देश नही है।

औरत का देश होता, तो औरत को भी घूमने फिरने की की आजादी होती। वो भी अपने मन पसंद की चीज खरीदती। बाजारो में बेधड़क घूमती। अपने बचपन की  सहेलियों के साथ पिकनिक जाती..!!               
           
एक एक मुहूर्त मिलकर युग का निर्माण करते है। मैं जिस युग में हूँ, उसी युग में एक छोटे से अंश को नोच-नोच कर मैंने इस टुकड़े में जड़ दिया है। मेरे से कुछ गलत लिख गया हो। साथियो क्षमा चाहता हूँ! सत्य है पर कड़वा है।        
          
प्रस्तुति शिव प्रसाद भारती
साभार – तस्लीमा नसरीन

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