आशिकों के दर्द का ईलाज़ क्या है ?

पति-पत्नी में बेहद प्यार था, दोनों वफ़ादार थे। शादी के 6 साल बाद पत्नी कुछ कारणों से डिप्रेशन में चले गयी। फ़ेसबुक पे पत्नी की दोस्ती एक समझदार व्यक्ति से हो गयी। उसकी मदद से वह डिप्रेशन से बाहर आ गयी, लेकिन एक नयी मुश्किल पैदा हो गयी। उसे उस व्यक्ति से गहरा प्यार हो गया। वह रातदिन उसके बारे में सोचने लगी, उसे पति में भी वही व्यक्ति दिखाई देने लगा।

उसे लगता, वह पति को धोखा दे रही है, वह आत्मग्लानि का शिकार थी।। लेकिन वह प्यार की फीलिंग्स से निकल नहीं पा रही थी। वह लड़की मेरी भी फ़ेसबुक फ़्रेंड है, उसने मुझे सब बताया तो मैंने उसे मन को कमांड देने का तरीका बता दिया। उसने तरीक़ा आज़माया, एक हफ़्ते में ही वह दुख और अनचाही भावनाओं से बाहर आ गई।

मेरा एक फ़ेसबुक दोस्त है। उसके भाई की मौत हो गयी। भाई की पत्नी छोटे बच्चों को लेकर हमेशा के लिये मायके चले गयी। घर में सन्नाटा छा गया। उसके परिवार को दोहरा सदमा लगा। दोस्त, उसकी माँ और बहन सब गहरे डिप्रेशन में चले गये, वे भाई और उसके बच्चों की फोटो देख-देखकर दुखी होते। बड़े दुःखद हालात बन गये।

उस दोस्त ने मुझे बताया। मैंने कहा कि सबसे पहले भाई और बच्चों के फोटो छिपा दो और उनकी बातें करना बंद कर दो। धीरे-धीरे ज़िंदगी जीने लायक हो जायेगी। मेरी बात कोई माने न माने, मेरे पास इसी किस्म के समाधान होते हैं। मुश्किल फ़ैसले ज़िंदगी आसान कर सकते हैं।

तस्वीर स्टारलाइट म्यूज से साभार

दो दशक पहले कई कारणों से इश्क बड़े गहरे होते थे और तक़रीबन हर इश्क का अंज़ाम दर्दनाक होता था। कई दुखी आशिक़ मुझसे पूछते थे कि इस दर्द का ईलाज़ क्या है? मैं उन्हें ईलाज़ बता देता था। वे ईलाज होते थे –

प्रेमिका की जितनी भी निशानियां, ख़त और फोटो वगैरह हैं, उनको नहर में बहा दो।
प्यार या दर्दभरे गीत सुनना बन्द करो।
दोस्तों से उसकी बातें करना बंद करो।
मन को कमांड दो कि उसे भूल जाये।
मन को डायवर्ट करने के लिये किसी और में दिलचस्पी लो।

जो आशिक मेरी बात मान लेते, वे कुछ दिन में नॉर्मल हो जाते, जिनको प्यार के दुख प्यारे थे, वे देवदास बनकर दूसरों को अपने दुख सुनाते रहते। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होता, जिसको कोई दुख न हो, कोई अपना दुख कह देता है, कोई चुपचाप सह लेता है। दुख हमें उतना ही दुखी कर सकता है, जितना हम दुखी होना चाहते हैं।

अक्सर लोग दुख का ईलाज़ नहीं पूछते, सिर्फ़ अपने दुख बताना चाहते हैं। अगर सुनने वाला ख़ुद दुखी है तो वह क्यों सुनना चाहेगा ? अगर सुनने वाला सुखी है तो वह क्यों दुखी होना चाहेगा?
लोग हंसने वालों के साथ हंसते हैं, रोने वालों के साथ कोई रोना नहीं चाहता, ये मनोवैज्ञानिक फ़ैक्ट है।

अक्सर लोग अपना दुख बताकर दूसरों की हमदर्दी हासिल करना चाहते हैं। वे नहीं जानते कि हमदर्दी कमज़ोर करती है, बेचारगी की भावना को बढ़ाती है, दुख को गहरा करती है।

ज़्यादातर लोग जानते नहीं है कि अहंकार, गुस्सा, नफ़रत, तनाव, जलन, जैसे भाव दुख का ही रूप हैं। जातिवादी, वर्गवादी, धार्मिक या राजनीतिक दुश्मनी भी दुख के ही रूप हैं। ये लोगों के फेवरेट दुख हैं।

विरोधियों को दुख देकर, जो सुख मिलता है, ये शैतानी सुख भी गहरा दुख है। ज़्यादातर लोगों को दुखी रहने की आदत होती है, वह दुखी रहने के बहाने ढूंढते हैं।  ज़रा-ज़रा-सी बात पे सुख-शांति को मन और घर से बाहर फेंक देते हैं।

हर दुख के पीछे कारण होते हैं, कारणों को दूर करने से ही दुख दूर होते हैं। दुख एक मानसिक अवस्था है, मन को कमांड देकर इस अवस्था को बदला जा सकता है। नेगेटिव सोच दुख देती है, पॉजिटिव सोच सुख देती है। रचनात्मक काम आनंद देते हैं।

पॉजिटिव सोच के साथ, रचनात्मक काम कीजिये।। आप सुखी हो जायेंगे।। परमानंद बन जायेंगे।

अजय राणा

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